सोया पड़ा मुहल्ला सारा भींचके सब दरवाजे
खटखट करती रात सुनूँ मैं केवल साँकल बाजे
अवनी, क्या घर पर हो ?
बारिश का पानी गिरता है यहॉं बारहों मास
बादल फिरते जैसे कोई गाय विचरती जाय
द्वार छेंककर खड़ी
विमुख वह लंबी हरियल घास
अवनी, क्या घर पर हो ?
अर्धलीन गहरी पीड़ा में डूबा
जब सो जाता, रात बजाती साँकल
तब सहसा मैं सुन पाता
अवनी, क्या घर पर हो ?
मूल कविता : शक्ति चट्टोपाध्याय
बांग्ला से हिंदी भाषांतर : नील कमल
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