फोड़कर उग सकने योग्य भूमि हेतु
भटकना था मुझे इस प्रांत से उस प्रांत
पत्तियों जितना ही औदार्य था मुझमें
जीवन को उसकी अंतिम बूँद तक सोख
रेशा रेशा हो जाना था माटी में आखिरकार
काँटों जितना ही उपेक्षित भी था मैं
फूल जैसे लोगों के बीच रहा निष्प्रयोजन
बच बचा कर मुझसे निकले तमाम भले लोग ।
- नील कमल