Monday, April 18, 2016

दो कविताएँ

एक : पतंग
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प्रार्थनाएँ सारी
स्थिगित रहेंगी इस समय

स्थगित रहेंगी सारी इच्छाएँ
विराम देने का मन है इसी क्षण
अब तक जारी सारी लड़ाइयों को

इस समय एक लड़की
उड़ा रही है पतंग पूरे उल्लास से
आसमान में इतरा रही है पतंग

हरी कमीज पर पीला
दुपट्टा ओढ़े इस लड़की का नाम
चुमकी, झिलिक, शगुफ़्ता या पारमिता
इनमें से कुछ भी हो, क्या फ़र्क पड़ता है,

नंगे पाँव थिरकती है
लड़की, जिसका हौसला
इस समय सातवें आसमान पर है,
 
पतंग गुदगुदा रही है आसमान को
ठीक उस जगह जहाँ ज़रा सा छू दे
तो खिलखिला कर हँसती है आत्मा

ये लड़की के फुरसत के लम्हे हैं
माँ का कहा हर काम निबटा कर
अपने स्कूल के बस्ते से बेखबर
वह कर रही है बातें आसमान से

आसमान की गुदगुदी उतरती है
डोर के सहारे अब नीचे की ओर
धीरे धीरे फैल जाती है होठों पर

धूप का सबसे चमकीला टुकड़ा
अब खिलता है उसकी आँखों में

ओ रे चुमकी
सुन ओ झिलिक
अरी ओ शगुफ़्ता
हाँ रे पारमिता सुन
तेरी डोर से जोड़ रहा हूँ साँसें
धरती का सारा शीशा पीस कर
आ मल दूँ इन धागों पर, तब तक
स्थगित रहें सारी प्रार्थनाएँ, सारी
इच्छाएँ और सारी जरुरी लड़ाइयाँ ।

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दो : नृत्य
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।।नृत्य - एक।।

नृत्य का तय अर्थ है
अर्थ है इसीलिए तय
व्याकरण भी है नृत्य का

यह नर्तकी इसलिए
नहीं कर रही है नृत्य
कि यह बसन्त का समय है

किसी भी मौसम में
यह नाचती है इसी तरह
नाचना इसके लिए लड़ने जैसा है ।

।।नृत्य - दो।।

नाचना एक काम भी हो सकता है
जैसे पत्थर तोड़ना, जैसे कुँए खोदना
जैसे नहरें निकालना, जैसे सुरंगें बनाना

जरुरी नहीं कि जो नाच रहा है
वह खुशी-ख़ुशी और उमग कर नाचता हो

नाचना एक काम भी हो सकता है ।

।।नृत्य - तीन।।

उसने देख लिए हैं
रंग ढेर सारे
यह उसके नाचने का समय है

उसे मिल गया है
फूलों का ठिकाना
यह उसके नाचने का समय है

उसे लूटना है
ढेर सारा पराग
यह उसके नाचने का समय है ।

।।नृत्य - चार।।

वे नाच रही हैं
और नाचते हुए
हवा पर लिख रही हैं
पैगाम अपने दोस्तों के लिए

एक आदिम भाषा की
लिपि उभर रही है हवा में
और विस्मय के साथ पढ़ी जा रही है

शायद यह सृष्टि की
पहली ही कोरियोग्राफी है
जिसके बारे में स्वर्ग की अप्सराओं
से भी पहले पता था मधुमक्खियों* को ।

(मधुमक्खियों का विशेष नृत्य, 'वैगल डांस')

- नील कमल

।। इंद्रप्रस्थ भारती, जनवरी-मार्च 2016 अंक में प्रकाशित ।।