Friday, January 1, 2021

अमलकांति - नीरेंद्रनाथ चक्रवर्ती



अमलकांति मेरा दोस्त
स्कूल में हम एकसाथ पढ़ते ।
रोज देर से क्लास में आता, जवाब कुछ बता नहीं पाता,
शब्दरूप पूछने पर अवाक यूँ खिड़की की तरफ देखता,
कि देखकर उसे हम सबको बड़ा कष्ट होता ।

हममें से कोई मास्टर बनना चाहता था, कोई डॉक्टर, कोई वकील ।
अमलकांति ऐसा कुछ भी नहीं चाहता था बनना।
वह धूप बनना चाहता था !
बारिश के बाद की उतरती शाम वाली शर्मीली धूप
जामुन और जामरुल की पत्तियों पर जो जरा सी मुस्कान की तरह खिली रहती है ।

हममें से कोई मास्टर बना, कोई डॉक्टर, कोई वकील ।
अमलकांति धूप न बन सका ।
वह अब अँधेरे एक छापाखाने में काम करता है ।
कभी कभी मुझसे मिलने आता है ; चाय पीता है,
इधर उधर की बातें करता है, फिर कहता है, अच्छा तो फिर चलता हूँ ।
मैं उसे दरवाजे तक छोड़ आता हूँ ।

हममें से जो इन दिनों करता है मास्टरी
वह अनायास ही डॉक्टर बन सकता था,
जो चाहता था डॉक्टर बनना, यदि वकील भी बनता
तो इसमें वैसा घाटा कुछ नहीं था ।

आखिर सबकी इच्छाएँ हुईं पूरी
एक अमलकांति को छोड़कर ।
अमलकांति धूप न बन सका ।
वही अमलकांति, धूप के बारे में सोचते सोचते,
सोचते सोचते,
जो एकदिन धूप बन जाना चाहता था । 

मूल कविता : नीरेंद्रनाथ चक्रवर्ती
बांग्ला से अनुवाद : नील कमल 

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