Sunday, September 10, 2017

अनुवाद

बांग्ला की साहित्यिक पत्रिका "एवं कथा" के अगस्त 2017 अंक में प्रकाशित कुछ हिंदी कविताओं के बांग्ला अनुवाद । इनमें उदय प्रकाश, विजय गौड़, सुरेश सेन निशान्त, शिरीष कुमार मौर्य, दिनेश कुशवाह, केशव तिवारी, नीलोत्पल, मनोज छाबड़ा, राकेश रोहित और नील कमल की एक-एक कविताएँ हैं । सभी अनुवाद नील कमल के हैं ।

Wednesday, May 17, 2017

दुःख सुख के गीत : सात कविताएँ

दुःख सुख के गीत :

।।एक।।

शुक्ल पक्ष का चाँद
अपनी सम्पूर्ण गोलाई में अँट कर
कसमसा रहा था आकाश में,

गर्म भात के टीले पर
छिलके की भूरी कमीज उतार कर
खिला था मक्खन की रंगत वाला एक
पूरा गोल आलू , थाली में।

।।दो।।

एक हल्दी
खिल रही थी साँवली देह पर,
दूसरी
घुल रही थी दाल में,

पीलापन आँच पर पक रहा था ।

।।तीन।।

सिल के साथ जैसे लोढ़ा
रहे हम एक दूसरे के साथ,

जीवन एक मसाला था
जो पिसता रहा, होता रहा
चिकना, और निखरता रहा।

।।चार।।

समय को गूँथा हमने
आटे की तरह
अपनी हथेली के बीच,

गूँथा समय के आटे को
दुःख के खारे पानी में,
बेला संघर्ष के चाक पर,
सेंका फिर उम्मीद की मद्धम आँच पर,

इस तरह कमाई हमने
अपने हिस्से की रोटी ।

।।पाँच।।

नमक का स्वाद सबसे पहले
बताया आँसुओं ने,

पसीने की बूँदों ने
कहा - 'देखो यहाँ है नमक',

नमक को पाया हमने
दो होठों के अंतराल में
जहाँ ठहरा हुआ था
सात समंदर का पानी ।

।।छह।।

क्या था उन अँगुलियों में
जाती रही देह और मन की यंत्रणा,

उस छुअन को ढूँढ़ता हूँ

क्या मुझे कह देना चाहिए
कि जब विदा ले रहा होऊँ
रूप रस गंध से भरी वसुंधरा से
तब और कुछ हो न हो
आत्मा को स्पर्श करती
तुम्हारी अँगुलियाँ हों पास ।

।।सात।।

बार बार आऊँगा
इसी पृथ्वी पर तुम्हें पाने

बार बार भर लूँगा साँसों में
धनिया की पत्ती से आती गमक को

लहसुन के बघार की
महक के लिए देखूँगा
बार बार रसोई की तरफ

हींग की छौंक वाली
गंध के लिए प्यार करूँगा
उन खुरदुरी हथेलियों को ।
______________________
नील कमल
मो. (0)9433123379

Friday, February 24, 2017

सुंदरबन :कुछ कविताएँ

सुंदरबन : कुछ कविताएँ
(नील कमल)

(१)
यह लाल निशान कैसा
जहाँ ठहर जाती है नज़र
रह जाती है उलझ उलझ कर
जल ही जल इस छोर से उस छोर

तटों पर जड़ की मिट्टी झाड़
खड़े तपस्वी सदृश हरे गाछ
किसने बाँध दिए ये लाल निशान
सबसे ऊँची टहनी पर लपेटा इन्हें

संकरी खाड़ी से निकल
बताता है नाविक रुँधे कण्ठस्वर में
यहाँ आया था एक दिन बाघ और
मार कर खा गया एक मछुआरे को

चेतावनी है लाल निशान
यहाँ से गुजरते हुए महसूस करें इसे
एक भूख शिकार करती है दूसरी का
यह जंगल है, यहाँ के नियम नहीं होते ।

(२)
छत्तों से शहद निचोड़ लाते हैं
मिठास की गहरी पहचान रखने वाले
ये मिठास के बदले खरीदना चाहते हैं
थोड़ा नमक, थोड़ी हल्दी और चावल

घने जंगलों में जाना आना है 
नोना जल के बीच रहने वाले ये लोग
पहचानते हैं बाघों और मगरमच्छों को
होता ही रहता है सामना जिनसे प्रायः

काली नहीं पूजते, दुर्गा नहीं पूजते
नहीं पूजते राम, कृष्ण, शिव, विष्णु
बनबीवी को पूजते हैं, निकल पड़ते हैं
उन इलाकों में जहाँ रहते हैं आदमखोर

हर वक़्त बाघ रहता है लगाए घात
पर ये निकल पड़ते हैं शहद की खोज में
कोई गीत गाते हुए बनबीवी की स्मृति में
रोज ही मौत के दरवाजे पर दस्तक देते हैं ।
(नोना जल = खारा पानी ; बनबीवी = सुंदरबन के जंगलों में पूजी जाने वाली किंवदंती देवी)

(३)
कैसे जले चूल्हा, घर में नहीं सूखा काठ
होगला गाछ की टहनियाँ सूखी जंगल में
जंगल में रहता बाघ आदमखोर खूँखार

कैसे पके भात, नहीं अन्न का दाना एक
महाजन के गोदाम में चावल के बोरे सारे
लकड़ियाँ बिकेंगी तभी चढ़ेगी हाँड़ी भात की

नोना जल में माछ, तट पर सोया घड़ियाल है
पाँव धँसे दलदल में, देखो जीवन का ये हाल है ।
(होगला = एक वृक्ष का स्थानीय नाम)

(४)
हेतल वन में रहती है मौत
कि रहता बाघ आदमखोर हेतल वन में
जाना उधर तो चौकन्ना रहना मेरे बच्चों
घात लगाए बैठा होगा छुपकर वहीं कहीं

लग चुका हो खून जिसके मुँह में
उस बाघ का करना तुम शिकार मिल कर
अकेले मत जाना हेतल वन में भूल कर भी ।
(हेतल = सुंदरबन क्षेत्र में पाया जाना वाला एक पेड़)

(५)
तितली अपने पंखों पर उठा ले पहाड़
तो उड़ती हुई दिखेगी बिलकुल ऐसी ही
अभी जैसी दिखती है यह डोंगी, खुली है
जो गोसाबा से लादे द्वीप के अनगिन मानुष ।
(गोसाबा = सुंदरबन के एक द्वीप का नाम)

(६)
जड़ें भी साँस लेती हैं यहाँ
ज़मीन से निकल आती हैं बाहर
हाथ उठाये हों बच्चों ने ज्यों अपनी कक्षा में

ये छरहरे गाछ जो दिखते हैं
मानिनी नायिका से खड़े इन इलाकों में
इनसे ही पाया नाम इस जंगल ने सुंदरबन
ये सुंदरी के गाछ, पंकिल भूमि में ज्यों खिले कँवल ।
(सुंदरी = एक पेड़ का नाम)

(७)
सरकार की चिंता यह नहीं
कितने आदमी मर गए बेमौत

सरकार नहीं जानना चाहती
कितने बच्चों को उठा ले गए बाघ

यह बाघों का अभयारण्य
सरकार की चिंता यहाँ केवल
बाघों को बचाने को लेकर है, और कुछ नहीं ।

(८)
मोहाने पर खड़ी है नाव
ढलते सूर्य का तेज उतर रहा है
दृश्य ऐसा बन रहा है इस वक़्त कि
पानी में अर्घ्य देता हो कोई आकाश से
तरल बिलकुल तरल सोने की धार गिरती
मोहाने पर जहाँ, थाह नहीं मिलता पानी का
एक सोने की तलवार घोंपी हुई दिखती पानी की छाती में ।

(९)
इस खाड़ी प्रदेश में
पहाड़ की नदियाँ खो देती हैं अपनी मिठास
एक खारेपन में घुलने लगता है वजूद उनका
इसके घावों से नमक का रिश्ता बहुत पुराना है
दारुण दुःख की अंतहीन एक गाथा है सुंदरबन ।

(१०)
क्या जानो तुम
उस आदमी का दुःख
महज थोड़े से साग और कुछ
मछलियों के सहारे लड़ता रहा जो अपनी भूख से
तुम्हारे लिए यह दो दिन एक रात का पैकेज टूर है ।

★★    ★★    ★★

नील कमल

मेल : neel.kamal1710@gmail.com
मोबाइल नंबर : 9433123379.

Thursday, January 5, 2017

बीता साल साथ चला आता था..

दिसम्बर की धूल लगी
वही घिसी और पुरानी जींस पहने
मैं चला आया था जनवरी के महीने में

जेबों में अब भी कहीं
पड़ा था बीते अक्टूबर का सूखा एक फूल
अब भी गीली थी मेरी
वह नीली कमीज जुलाई की बौछारों से

मेरी रुमाल में अब भी सहमा
पड़ा था मई की धूप का गर्म एक टुकड़ा
यादें भी पिछले मार्च की
चुभती थीं रह रह कर हवा जब भी चलती

यह किस नये साल में आ गया था मैं
जिसमें पूरा का पूरा बीता साल साथ चला आता था ।

- नील कमल