Wednesday, May 17, 2017

दुःख सुख के गीत : सात कविताएँ

दुःख सुख के गीत :

।।एक।।

शुक्ल पक्ष का चाँद
अपनी सम्पूर्ण गोलाई में अँट कर
कसमसा रहा था आकाश में,

गर्म भात के टीले पर
छिलके की भूरी कमीज उतार कर
खिला था मक्खन की रंगत वाला एक
पूरा गोल आलू , थाली में।

।।दो।।

एक हल्दी
खिल रही थी साँवली देह पर,
दूसरी
घुल रही थी दाल में,

पीलापन आँच पर पक रहा था ।

।।तीन।।

सिल के साथ जैसे लोढ़ा
रहे हम एक दूसरे के साथ,

जीवन एक मसाला था
जो पिसता रहा, होता रहा
चिकना, और निखरता रहा।

।।चार।।

समय को गूँथा हमने
आटे की तरह
अपनी हथेली के बीच,

गूँथा समय के आटे को
दुःख के खारे पानी में,
बेला संघर्ष के चाक पर,
सेंका फिर उम्मीद की मद्धम आँच पर,

इस तरह कमाई हमने
अपने हिस्से की रोटी ।

।।पाँच।।

नमक का स्वाद सबसे पहले
बताया आँसुओं ने,

पसीने की बूँदों ने
कहा - 'देखो यहाँ है नमक',

नमक को पाया हमने
दो होठों के अंतराल में
जहाँ ठहरा हुआ था
सात समंदर का पानी ।

।।छह।।

क्या था उन अँगुलियों में
जाती रही देह और मन की यंत्रणा,

उस छुअन को ढूँढ़ता हूँ

क्या मुझे कह देना चाहिए
कि जब विदा ले रहा होऊँ
रूप रस गंध से भरी वसुंधरा से
तब और कुछ हो न हो
आत्मा को स्पर्श करती
तुम्हारी अँगुलियाँ हों पास ।

।।सात।।

बार बार आऊँगा
इसी पृथ्वी पर तुम्हें पाने

बार बार भर लूँगा साँसों में
धनिया की पत्ती से आती गमक को

लहसुन के बघार की
महक के लिए देखूँगा
बार बार रसोई की तरफ

हींग की छौंक वाली
गंध के लिए प्यार करूँगा
उन खुरदुरी हथेलियों को ।
______________________
नील कमल
मो. (0)9433123379