एक सुन्दर कविता की तरह
वह लटका है
पेड़ की कमसिन शाख पर
आते-जाते रहते हैं
फलों के आलोचक
कभी सुग्गे की तरह
तो कभी गौरैया की तरह
मुझे इतना पता है
कि परिन्दे जब आते हैं
पेड़ों पर, अपनी नुकीली ठोर से
कुरेदते हैं जब किसी
मीठे फल की पीठ,
तो उनके इस सुलूक में
उनके विवेक की भूमिका
उतनी नहीं होती
जितनी कि उनकी भूख की
हो सकती है
और, इतना तो आप भी
देख ही रहे होंगे
कि पेड़ पर कुछ अमरूद हैं
आधे खाए-जा-चुके
यह पूस का महीना है
एक फलते-फूलते मौसम में
यह कविता के अमरूद होने का समय है
आपकी कविता अच्छी लगी... ब्लॉग भी अब अच्छा हो गया है... बधाई...
ReplyDeleteBahut sunder kavita hain.
ReplyDelete'...यह पूस का महीना है
ReplyDeleteएक फलते-फूलते मौसम में
यह कविता के अमरूद होने का समय है '
अजी क्या बात है...!
bahut sunder kavita hai ji.
ReplyDeletebahut sunder kavita hai ji.
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