एक कविता लिखना चाहता हूँ ..
एक शब्द को स्टेडियम के बाहर
उछाल देना चाहता हूँ
पूरी ताक़त बटोर कर ,
बिलकुल गोल और चमकदार
एक शब्द पर साध कर निगाह
प्रहार करना चाहता हूँ इस तरह
कि कोई चालाक आदमी उसे
बीच में लपक न सके
आज कविता में
सचिन तेन्दुलकर लिखना चाहता हूँ ।
एक शब्द को उठा कर
पार्क-स्ट्रीट , चौरंगी के फ़ुटपाथों से
"निर्मल हृदय" तक ले जाना चाहता हूँ ,
पवित्र मन से सहलाते हुए
एक घायल अपाहिज शब्द को
साफ़ कर देना चाहता हूँ
उसकी देह से रिसती मवाद
और भिनभिनाती मक्खियाँ
आज कविता में
मदर टेरेसा लिखना चाहता हूँ ।
एक शब्द के साथ
हिंसक हुए बिना
परख लेना चाहता हूँ अपना सुलूक ,
एक भाषा के एकान्त में
पूरी रात सोना चाहता हूँ
कुछ जवान गर्म शब्दों के साथ
दोहराना चाहता हूँ "सत्य" के साथ मेरे "प्रयोग"
आज कविता में
मोहनदास कर्मचन्द लिखना चाहता हूँ ।
और भी बहुत-बहुत सी बातें
चाहता हूँ कविता में करना , एक नहीं
दो नहीं
तीन नहीं
चारों पुरुषार्थ चाहता हूँ
सम्भव देखना - शब्दों में , कविता में ।
एक शब्द को स्टेडियम के बाहर
उछाल देना चाहता हूँ
पूरी ताक़त बटोर कर ,
बिलकुल गोल और चमकदार
एक शब्द पर साध कर निगाह
प्रहार करना चाहता हूँ इस तरह
कि कोई चालाक आदमी उसे
बीच में लपक न सके
आज कविता में
सचिन तेन्दुलकर लिखना चाहता हूँ ।
एक शब्द को उठा कर
पार्क-स्ट्रीट , चौरंगी के फ़ुटपाथों से
"निर्मल हृदय" तक ले जाना चाहता हूँ ,
पवित्र मन से सहलाते हुए
एक घायल अपाहिज शब्द को
साफ़ कर देना चाहता हूँ
उसकी देह से रिसती मवाद
और भिनभिनाती मक्खियाँ
आज कविता में
मदर टेरेसा लिखना चाहता हूँ ।
एक शब्द के साथ
हिंसक हुए बिना
परख लेना चाहता हूँ अपना सुलूक ,
एक भाषा के एकान्त में
पूरी रात सोना चाहता हूँ
कुछ जवान गर्म शब्दों के साथ
दोहराना चाहता हूँ "सत्य" के साथ मेरे "प्रयोग"
आज कविता में
मोहनदास कर्मचन्द लिखना चाहता हूँ ।
और भी बहुत-बहुत सी बातें
चाहता हूँ कविता में करना , एक नहीं
दो नहीं
तीन नहीं
चारों पुरुषार्थ चाहता हूँ
सम्भव देखना - शब्दों में , कविता में ।