Thursday, January 5, 2017

बीता साल साथ चला आता था..

दिसम्बर की धूल लगी
वही घिसी और पुरानी जींस पहने
मैं चला आया था जनवरी के महीने में

जेबों में अब भी कहीं
पड़ा था बीते अक्टूबर का सूखा एक फूल
अब भी गीली थी मेरी
वह नीली कमीज जुलाई की बौछारों से

मेरी रुमाल में अब भी सहमा
पड़ा था मई की धूप का गर्म एक टुकड़ा
यादें भी पिछले मार्च की
चुभती थीं रह रह कर हवा जब भी चलती

यह किस नये साल में आ गया था मैं
जिसमें पूरा का पूरा बीता साल साथ चला आता था ।

- नील कमल


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