Sunday, June 23, 2019

नामखाना लोकल

इंजन से चौथे डिब्बे में
मेरी बगल में बैठा
यह अधेड़ उम्र हॉकर
टोकरी के फल सारे बेच कर
इतना निश्चिंत कि जल्द ही
शिथिल देह झपकी लेता
रखता है सिर मेरे बायें कंधे पर

थकान से बेसुध उसे कहाँ मालूम
उसके पसीने से भींग रहा मेरा कंधा

'फटाश जल' की बोतलें खुलती हैं
तो मुझे याद आती है अपनी प्यास

चाहता हूँ कि टोक दूँ उसे, कहूँ
सीधे होकर क्यों नहीं बैठते भाई,
लेकिन चुप रहता हूँ, सोचता हूँ
कितने बड़भागी होते हैं कंधे जिनपर
टेक लेकर निश्चिंत सो सकता है मनुष्य

दुःख यह कि चार स्टेशन बाद ही
उतरना होगा अपने भींगे कंधों के साथ ।

(फटाश जल : सियालदह साउथ सेक्शन का एक लोकप्रिय पेय; सस्ते मूल्य वाला बोतलबंद कार्बोनेटेड वाटर ।)

- नील कमल

Thursday, June 13, 2019

पुरुलिया

फुदकती हुई मैना
आ धमकती है बीच सड़क
और ढीला पड़ने लगता है
पाँव का दबाव एक्सीलेरेटर पर

बकरियाँ दलबद्ध
पार करती हैं पिच वाली सड़क
टुनटुन बजती हैं गले की घंटियाँ
भूले से भी नहीं बजाता हॉर्न टूरिस्ट गाड़ी का ड्राइवर

बिना भय के मोर
बच्चों के झुण्ड के साथ पार करता है सड़क
कहीं कोई नहीं होता हैरान इसअद्भुत दृश्य पर

सभ्यता के नक्शे पर एक पिछड़ा इलाका है यह
मनुष्यता की देह यहाँ गीली है पसीने के नमक से

पृथ्वी के सकुचाये मुख पर
मल दिया है किसी ने रक्तपलाश का रंग

पहाड़ की दो चोटियों के फाँक से
सोने की गेंद सा उछल आया है दोल पूर्णिमा का चाँद ।

- नील कमल

Friday, June 7, 2019

वे आ रहे हैं

पूरब से आई आवाज़, वे आ रहे हैं
पश्चिम से गूँजा नारा, हाँ वे आ रहे हैं
उत्तर-दक्षिण में उनके आने की घोषणाएँ थीं

मुँह उठाये वे आते थे
वे आते थे और सीधे मंचों पर चढ़ जाते थे
मंचों पर चढ़ कर वे कविताओं का पाठ करते थे

जितनी देर वे पाठ करते अपनी कविताएँ
उतनी देर के लिये सोने चले जाते थे हत्यारे
उतनी देर के लिये फूल ही फूल खिल जाते थे

वे प्रेम कविताओं के कवि थे
और हर हाल में बचा लेना चाहते थे प्रेम
प्रेम को बचाने के लिये वे कविताएँ लिखते थे

वे इस कदर डूबे थे प्रेम में
कि फ्रेम के बाहर नहीं देखते थे नज़र उठा कर
फ्रेम के बाहर की दुनिया उनकी दुनिया नहीं थी

वे दर्शनीय कवि थे
वे प्रदर्शनीय कवि थे
किंतु सदा संशय रहता उन्हें अपने विश्वसनीय होने पर ।

- नील कमल