वैसी न हों कवितायें
जैसे ये ऑर्किड के फूल जिन्हें
इनामी नुमाइश के लिये भेजा है
न्यू अलीपुर की मिसेज़ जालान ने
वैसी तो हरगिज़ न हों वे
जैसा यह निरापद और सुन्दर
सर गिरीन्द्रकिशोर रायचौधरी का
विदेशी नस्ल वाला पालतू कुत्ता जिसे
इन सर्दियों में वे भेज रहे हैं इनामी शो में
फूल सी नाजुक और पालतू किस्म की
कवितायें किसी का क्या बना-बिगाड़ लेंगी भला
उन्हें होना होगा उस जादुई पत्थर की तरह जिसे
अँधेरे में राह भूले उस मुसाफिर को एक साधु ने दिया
और राह दिखाने के बाद जिसका जादू खत्म हो गया
मुझे बार बार कचोटती है यह बात
कि कविता का एक निश्चित प्रयोजन होना चाहिये
जैसे अभी-अभी अपनी बंशी में मछली फँसाने के लिये
चारा बना रहा है मेरे गाँव का अधेड़ जतनलाल कहार
(मछलियों की भाषा यदि लिख पाता जतनलाल कहार
तो आज उसके नाम कोई एक महाकाव्य जरूर होता)
कोई पूछे मुझसे कि कैसी कविता चाहता हूँ मैं
तो कहूँगा वह उस काँटे की तरह हो जो धँस जाये
तुम्हारे कर्णफूलों की जगह और नगीने सी दिपदिप करे
मछली के काँटे सी बिंध जाये हत्यारे के कण्ठ में और
लोग कहें कि कविता का काँटा था जिससे मरा हत्यारा
- नील कमल