Friday, June 7, 2019

वे आ रहे हैं

पूरब से आई आवाज़, वे आ रहे हैं
पश्चिम से गूँजा नारा, हाँ वे आ रहे हैं
उत्तर-दक्षिण में उनके आने की घोषणाएँ थीं

मुँह उठाये वे आते थे
वे आते थे और सीधे मंचों पर चढ़ जाते थे
मंचों पर चढ़ कर वे कविताओं का पाठ करते थे

जितनी देर वे पाठ करते अपनी कविताएँ
उतनी देर के लिये सोने चले जाते थे हत्यारे
उतनी देर के लिये फूल ही फूल खिल जाते थे

वे प्रेम कविताओं के कवि थे
और हर हाल में बचा लेना चाहते थे प्रेम
प्रेम को बचाने के लिये वे कविताएँ लिखते थे

वे इस कदर डूबे थे प्रेम में
कि फ्रेम के बाहर नहीं देखते थे नज़र उठा कर
फ्रेम के बाहर की दुनिया उनकी दुनिया नहीं थी

वे दर्शनीय कवि थे
वे प्रदर्शनीय कवि थे
किंतु सदा संशय रहता उन्हें अपने विश्वसनीय होने पर ।

- नील कमल

4 comments:

  1. वाह, बहुत मारक अभिव्यक्ति।

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    1. शुक्रिया, राजेश्वर जी ।

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    1. शुक्रिया, प्रशांत ।

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