Thursday, June 13, 2019

पुरुलिया

फुदकती हुई मैना
आ धमकती है बीच सड़क
और ढीला पड़ने लगता है
पाँव का दबाव एक्सीलेरेटर पर

बकरियाँ दलबद्ध
पार करती हैं पिच वाली सड़क
टुनटुन बजती हैं गले की घंटियाँ
भूले से भी नहीं बजाता हॉर्न टूरिस्ट गाड़ी का ड्राइवर

बिना भय के मोर
बच्चों के झुण्ड के साथ पार करता है सड़क
कहीं कोई नहीं होता हैरान इसअद्भुत दृश्य पर

सभ्यता के नक्शे पर एक पिछड़ा इलाका है यह
मनुष्यता की देह यहाँ गीली है पसीने के नमक से

पृथ्वी के सकुचाये मुख पर
मल दिया है किसी ने रक्तपलाश का रंग

पहाड़ की दो चोटियों के फाँक से
सोने की गेंद सा उछल आया है दोल पूर्णिमा का चाँद ।

- नील कमल

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