(१) अमलतास
गुलमोहर ने
कुहनी गड़ा दी
अमलतास की कमर में,
और पलट कर
थपकी दी अमलतास ने
गुलमोहर की पीठ पर |
ठीक उसी वक्त
खिल उठा कनेर का चेहरा,
पीपल के होठों पर
उतर आई अजीब सी एक चमक,
एक बच्चा कटहल
हरी काँटेदार त्वचा वाला
उमग कर चिपका रहा
अधेड़ पिता के कंधे से
और उसके भीतर सोये
कोये गुदगुदी महसूस करते रहे
गुलमोहर की शरारत पर |
गुलमोहर और अमलतास
हँसते रहे, जैसे
बेखयाली में हँस-हँस कर
दोहरी हुई जाती हों
दो अल्हड़ सहेलियाँ |
वहीं कहीं
पराजित हो दुबका रहा
हिन्दी का एक किताबी मुहावरा
लाल-पीला होता रहा समय का चेहरा
गुस्से से नहीं, प्रेम से तृप्त और अघाया हुआ |
(२) श्रावण
आषाढ़-पिता की गोद से
अभी-अभी उतरा है श्रावण-शिशु |
पृथ्वी का सारा दुःख
पृथ्वी का सारा संताप
धुल गया है बारिश में |
फूलों में रंग है पहले से ज्यादा
पत्तियों में चमक रोज से ज्यादा |
नहा कर खिल उठी है पृथ्वी की देह,
मातृत्व के दर्प में चमकती हुई आदिम स्त्री देह |
(३) दुविधा – एक
उस वक्त
जबकि मेरी कनपटी पर
सटी थी आततायी की बंदूक
ईश्वर को नींद आ गई थी |
ईश्वर की शपथ लेकर
जिन्होंने जताई थी आस्था
दुनिया की सबसे मोटी किताब में
उनके लिए, उस वक्त
संविधान, कबाड़ी वाले के यहाँ
पड़ी किसी किताब से अधिक नहीं था |
तय मुझे करना था,
मारा जाऊँ, एक किताब में
लिखे शब्दों को बचाते हुए
या दोनों हाथ ऊपर कर दूँ |
(४) दुविधा – दो
सच बोलूँगा और मारा जाऊँगा
बोलूँगा झूठ तो थोड़ी देर और
रह जाऊँगा ज़िंदा |
चुप रहूँगा तो शायद
बचा रहूँ कुछ और दिन |
मेरे भीतर छुप कर बैठा
मिडिल क्लास आदमी
चाहता है साध लूँ चुप्पी
और निहायत ही मुश्किल लगे
अगर चुप रहना, तो बोल दूँ झूठ
और बच निकलूँ फिलहाल |
मेरे भीतर तभी सिर उठा कर
खड़ा होता है एक कवि
मेरा कवि मुझे सच कहने को तत्पर करता है |
_________________
अनहद -6 (संपादक : संतोष चतुर्वेदी), इलाहबाद , में प्रकाशित
बहुत खूब
ReplyDeleteThanks for sharing such a wonderful post
ReplyDeleteEbook Publishing company in India